Thursday 28 November 2013

अमरुद, मै और वो

उस साल नवम्बर का महीना था. जब मौसम वैसे ही गुलाबी था जैसे कि आज कल है. सूरज भी इतना ही सुहाना था और चाँद कि शीतलता भी वैसे ही थी जैसे कि आज है.

उन दिनों मेरी सुबह अमरुद के बगीचे में हुआ करती थी, दोपहर दादी माँ के गोद में और शाम सरसों खेत में.  मेरी दुनिया अमरुद के पेड़ से शुरू हो के खेत खलिहान समा जाया करती थी.

:"वो फीलिंग्स" तो अभी नेसेंट थे.

उस सुबह अमरुद के पेड़ पे चढ़ रहा था. अचानक से मेरी नजर पड़ोस वाले छत पे गयी. लम्बे लम्बे बाल दिखे थे. उस छत पे पहले कोई नही दीखता.

उस तरफ देखते हुए मै जितना ऊपर चढ़ सकता था चढ़ा. मुझे नही पता था वो कौन थी? आज के पहले ऐसा कभी नही हुआ था, लेकिन पता नही क्या हुआ और मैंने एक अमरुद उस छत पे फेंक दिया.

वो इधर उधर देखने लगी. मैंने पेड़ जोर से हिलाया ताकि उसको बता सकूँ मैंने वो अमरुद फेंकी थी. जैसे ही पेड़ को हिलते हुए देखा "लंगूर लंगूर" कहते हुए वो भाग गयी.    

क्या होना था फिर. वो पड़ोस वाली आंटी घर पे कम्प्लेन ले के आ गयी.

"जवान हो रहा है आपका लड़का। एकदम बदतमीज हो गया है. मेरी भांजी को डरा दिया। पटने में रहती है बेचारी कान्वेंट में पढ़ती है इसको क्या पता है पेड़ पे लंगूर ही नही लड़के भी चढ़ते हैं. सम्भाल लीजिये."

मुझे क्या होने वाला था. मैं भी ठहरा हीरो. अगले सुबह वो फिर छत पे थी और मैंने फिर एक अमरुद दे मारा।

पता नही क्यों कान्वेंट में पढ़ने वाली वो लड़की आज न तो डरी न ही भागी।

मैंने दूसरा अमरुद दे मारा, वो हंसने लगी।  उसके बाद तो हर सुबह मैं पेड़ पे जाता। और एक अमरुद के बदले इतना सारा स्माइल ले आता.

उस गुरुवार वो छत पे आयी और तुरत जाने लगी.

"अमरुद नही लेना है आज?" मैंने पूछा। "नहीं नहीं मैं जा रही हूँ. सर्दियों कि छुट्टियों में मामा के घर आयी थी." मैं कुछ बोल पाता इस से पहले वो नीचे जा चुकी थी.

और कुछ समझता इससे पहले सफ़ेद रंग को वो मारुती मेरे सामने से गुजर गयी.

मैंने मेरी साइकिल को शॉर्ट कट रस्ते पे दौड़ा दिया ताकि सड़क पे मै उस से पहले पहुँच जाऊँ। और एक अमरुद के बदले उसकी इतनी सारी स्माइल ले आऊँ.

लेकिन जब मैं सड़क पे पहुंचा "BR-05 - 9869" वाला प्लेट ही दिखा और वो भी एक मिनट के अंदर धुंधला हो गया.

उस दिन के बाद पता नही क्यों मैंने अमरुद के पेड़ पे नही चढ़ा. हाँ बगीचे में जाता रहा.

दो साल में दसवीं पास कर के पटना आया. मैंने पता किया था वो वहाँ किस गली में रहती थी. उसी लोकैलिटी में मैंने अपना डेरा लिया।

और एक दिन वो दिख ही गयी उस मंदिर में. मैंने उसे पहचान लिया और सौभाग्य से उसने भी मुझे।

बातें हुईं तो पता चला वो आज कल साइंस पढ़ रही है.  उसी समय कहीं किसी शहर में ब्लास्ट हुआ था. "आपको जर्नलिस्ट बनना है न. ये बताइये लोग क्यों इतना ब्लास्ट करते हैं?."

मैंने कहा

"शहर है ये यहाँ मौसम है बारूदों का एक बार फिर चलो मेरे गाँव मौसम है अमरूदों का
शहर है ये प्यार के लिए इन्तजार है कल परसों का मेरे गाँव खेत है सरसों का"

वो झेंप गयी. और मैं खुश हो गया. शर्म से लाल उसने चेहरे को निचे किया तो वो लम्बे बाल से उसकी मुस्कान छुप गयी.

उस दिन तो वो मेरे गाँव नही आयी.

लेकिन पिछले ३ सालों से हम दोनों सुबह में जगने के बाद साथ साथ उसी बगीचे में चाय पीते हैं. चाय बनाना तो  मुझे ही पड़ता है.  

Sunday 24 November 2013

मुझे तेरी याद आती है नवोदय

जब खेलते-खेलते सर का पसीना कान में चला जाये  
जब कोर्ट में गिरने पे "उठ साला" की आवाज आये  
जब मेरा स्पोर्ट्स शू मेरे राइवल के पैर में नजर आये 
जब कोई मेरा साबून शेयर करे, कपडा आलमीरा से यूँ ही ले जाये।  

जब मेरे थाली से पहला कौर कोई और 
और अन्तिम कौर कोई और खा जाये    
जब होली में मेरा नया पैंट कोई और फड़वा आये 
जब स्टेज पे महफ़िल सज जाये।  


जब फर्स्ट क्रश कि बात चल जाये 
जब नजरें किसी लड़की से अचानक मिल जाये 
और जब तुरत ही दिल में फूल खिल जाये 
और वो अगले ही दिन भैया बोल जाये!   

जब जिंदगी के खूबशूरत सात सालों कि बात हो जाये 
जब मॉर्निंग में पीटी करने कि बात आ जाए 
जब बाउंड्री फांद के समोसा खाने जाने की बात आ जाये 
जब द बेस्ट स्कूल कि बात आ जाये.


हाँ मुझे तेरी याद आती है नवोदय 
जब मेरी जिंदगी कि बात आ जाये 
जब मेरी खुशियों कि बात आ जाये 
जब मेरे ख्वाबों की बात जाये 
जब मेरे बचपन कि, मेरे जवानी कि बात आ जाये।     




Saturday 23 November 2013

And I had a lovely interpretation of 3rd law

"Yes around the same time that year
when the weather was as pink as now
the sun as warm as now
and the moon also as cool as now

When my morning happened in guava orchard
afternoon in grandmother's lap, evening in paddy field
when I did not know beyond farm, field

and those feelings were still nascent

Photo Credit: Facebook Wall of Sourav Roy Berman - hero in When he printed a newspaper on her for her b'day article on this blog 



Yes around the same time that year
when that morning I was climbing the guava tree
I saw a She on the neighborhood roof
and "those feelings" suddenly did't remain nascent

Yes around the same time that year
when I was to enter Std. eight
when Newton's Law was introduced to me
and I had a LOVEly interpretation of 3rd law......"


After 25 years of their marriage she asked him, "Do you remember when you saw me for the first time?".

And he replied like that.

Sunday 17 November 2013

एक बेटी की चिट्ठी घरवालों के नाम

"माँ! पहली बार मैं जब रोई थी तब तुमने मेरे आँखों से आँसू और नाक का पानी आपने साफ़ किया था. ये कहीं नही था.

भैया! खड़े होने के चाहत में पलंग का सहारा लेते हुए जब मैं गिर गयी थी तब आपने मुझे सम्भाला था. गोद में ले लिया था और मुझे अपने खिलौने दे दिए थे. इसको क्या पता मुझे क्या हुआ?

दीदी! अक्सर हमारे बिच अपने खिलोने के लिए झगडे होते थे लेकिन इस से पहले कि मैं हार कर रोने लागूं, आप अपने सारे खिलौने मेरे सामने रख देती. ये तो अपनी दुनिया में मस्त था. 

पापा! जब स्कुल जाने कि ऊमर हुई तो आपकी अंगुली पकड़ के मैं स्कुल जाने लगी. क्लास रूम में बैठे बैठे मुझे माँ की बहुत याद आती. मैं रोने लगती. छुट्टी होती. मैं दौड़ के क्लास के बाहर निकलती. इसकी परछाई भी आस पास नही दिखती. 

चाचा! एक दिन भी ऐसा नही हुआ कि बाहर आने पे आप मेरा इन्तजार न कर रहे होते. मुझे तो मालूम भी नहीं था इस लड़के का कहीं कोई वजूद भी है. 
 
घर के दरवाजे पे हर दिन दादी माँ सोनपापड़ी लिए मेरा रास्ता देखती। दादी! आपकी गोद में बैठते ही मैं तो थोड़े देर के लिए माँ को भूल ही जाती.

बचपन, किशोरावस्था और जवानी के कुछ साल भी मुझे कुछ पता नही था दुनिया में एक इंसान ये भी है.

लेकिन इसको जानने के बाद भी मैंने महसूस किया - मुझे जिंदगी आपने दी, जीना इसने सिखाया.

मुझे खड़ा आपने किया, चलना इसने सिखाया. हंसना आपने सिखाया, मुस्कुराना इसने सिखाया. बोलना आपने सिखाया पर मेरे बोलों में गीत इस ने डाले. देखना आपने सिखाया, पर दुनिया की रंगनीयत तो इसने दिखाया. आपमें मैंने भगवान् को देखा पर रब्ब के दर्शन तो इसने कराये.

लेकिन मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि आज भी'मेरी जिंदगी में पहले स्थान आपका है. मैं आपके उपकार कैसे भूल सकती हूँ. आप मना करेंगे तो मैं इसकी जीवनसंगिनी नहीं बनूंगी. वो दूसरी जाति का है. और आपको इसी बात से समस्या है. लेकिन ना तो मैं, ना आप और ना खुद वो अपनी जाति बदल सकते हैँ."

बगल में खड़ा वो लड़का उसकी बात सुन रहा था. उसके पास भी कहने को बहुत कुछ था. लेकिन वो चुप था. दो मिनट कि शांति के बाद वो जाने लगा. ये सोचता रहा काश कि मैं अपना सरनेम बदल सकता.

घर के बाहर वो अपनी गाड़ी में जैसे ही बैठा लड़की के भैया ने हाथ के इशारे से उसे रोका. वो उनके पास गया.

"सॉरी," उसका हाथ पकड़ के वो बोले, "जैसे ही दिन बने बारात ले के आ जाओ." 

 



Thursday 7 November 2013

आधे पॉलीथिन पे बैठा....आधे से सर ढंक लिया था वो.

दिसम्बर की वो ठंडी सुबह और भी सर्द हो गयी थी. बारिश हो रही थी, लगातार. पटना स्टेशन पे ट्रेन से उतर मैं इन्तजार करने लगा था, बारिश के छूटने का. एक्ज़ाम के बाद छुट्टियाँ हुई थीं.

बारिश बंद हुई तो मैं स्टेशन के बाहर आया. उस मंदिर के आगे हमेशा कि तरह कुछ "भिखारी" बैठे थे. 'पटना में भिखारियों की समस्या' पे मुझे प्रोजेक्ट करना था, सोचा उनसे कुछ बात की जाये.

महावीर मंदिर के पास उस जगह पे भिखारियों का बैठना एक आम सी बात हो गयी है. कई सालों से मै देखता हूँ वो जगह ऐसी ही है. हाँ कभी उनसे बात करने का प्रयास नही किया.

लेकिन आते-जाते, उस दिन से पहले, उस जगह पे बैठ किसी भी भिखारी को रोते नही देखा था. उस दिन सबसे अलग बैठे एक बच्चा लगातार रोये जा रहा था. आवाज नही आ रही थी उसके गले से, आँखें बह रही थी.

बारिश से बचने के लिए एक छोटे से पॉलीथिन पे बैठा था. और उसी पॉलीथिन का एक हिस्सा अपने सर पे रखा था.       

उसके पास गया, उसने झट से आँसू पोछ लिए . सर्दी में कांपते हुए एल्मुनिआ वाला छोटा कटोरा मेरी तरफ बढ़ा दिया. दया आयी, मैंने झट से पॉकेट से ५ का एक सिक्का उसके कटोरे में गिरा दिया.

"नाम अरमान हे. आठ साल उमर हॆ . माए के चेहरा न देखली हे. कहिये मर गेल. बाप गांधी मैदान में ठेला पे भूँजा बेच हल. उ दिनवा हम पढ़े गेल हली. घरे ऐली त देखली बाबूजी न आएल हथ. ठेला के पास गैली त देखली भूँजा रोड पे छीँटाइल हे. ठेला ओने पलटाएल हे. उजर उजर चबेनी लाल हो गेल हेल. आ ओकर बाद से बाबूजी न आएल हे. लोग कहित हलन कि बम फट गेलइ हे."

जैसे मै उसके और पास गया वो कहने लगा था. अपने छोटे से बटुए से खुनी लाल रंग के भूँजा के दाने वो मुझे दिखाया.

"बाबूजी को बम लगा था क्या?" मैंने पूछा.

"न न. उ दिन रैली हलई न, ता नेता जी के साथ गेलन हे बाबूजी. हम सोचिथली २ नवम्बर के नेता जी के साथे आ जैतन बाकि न अइलन. कमाइत होएतन. फिर नेता जी अथिन ता आ जैतन."

आगे बोलने कि हिम्मत नहीं हुई मेरी. अपना थैला उठाया. पॉकेट से रुमाल निकाला. आँखों से आ रहे पानी को पोछते हुए ऑटो वालों कि तरफ बढ़ गया.

जिन्दगी आगे बढ़ गयी थी मेरी.

दो दिनों के बाद मै फिर से वहाँ आया था. प्रोजेक्ट रिपोर्ट जो बनाना था. इस बार अरमान कि तरफ  जा नही पाया. बस इतना देखा, आज वो पोलिथिन पे नही बैठा था, पुरे पोलिथिन को ओढ़ लिया था. आज बारिश नही हो रही थी. अपना काम कर के मै कॉलेज लौट आया. प्रोजेक्ट सबमिट कर दिया. अच्छे मार्क्स भी मिलेंगे.

जैसेकि नेता रैली कर के लौट गए. और शायद अच्छे चुनावी रिज़ल्ट भी मिले.

फिर चुनाव आयेगा नेताजी फिर से वहाँ आयेंगे. मेरे जैसे और कई लोग वहाँ स्टोरी लिखने और प्रोजेक्ट  करने भी जाएंगे. लेकिन इतना तो तय है कि उसके बाबूजी नही आयेंगे.


  

Monday 4 November 2013

Let the sycophancy be dead, let my voice be heard

Can I call a spade a spade without fear of being slammed
can I enjoy my rights to speak without being intimidated
can I show you the mirror you deserve
or should I bear all your bullshits only because
you are some party's affiliate, some party’s PM candidate?

True that those in my neighbourhood have vouched for you
true that many of my friends are campaigning for you 
but do not expect me to be a blind follower
it’s a mistake I am their friend, their neighbour   

Sycophants don't let me speak what and when I want to
they can argue, counter and contest 
but they seek to silence the voice that I have
for they don't like the truth, the party don't like the truth 

Who cares, even if tomorrow you become Prime Minister or 
who gives a damn even if you don’t get single vote
they will worship you, they will butter you
despite all the killings that you allowed
despite all the hatred you have instilled

Sycophant that they are, little do I care
threat to 'humanity' they are, I am afraid
threat to idea of Indianness they are, I am concerned 
threat to harmony they are, I am apprehensive 

I hate you, for you befool people in the name of caste
I hate you, for you blackmail people in the name of religion
And not mistake me as loving them only because I hate you
Let the sycophancy be dead, let my voice be heard 


Disclaimer: I have some wonderful friends and neighbours. Only thing is that they have different political liking than I. I respect them all and want them all be in my life.