Sunday 9 February 2014

आज पहली बार देखे थे कि वो शरमा रही थी................

जब आईआईएमसी ने पूरी शहर के शैक्षणिक भ्रमण पे भेजा तो ये पहला मौका था जब मै समुद्र को नजदीक से देखने वाला था. 

चिरकुट तो हम शुरुए से थे, हियाँ पर भी मेरी चिरकुटई जारी रही. सब लोग लहरों से खेल रहे थे, हम समुद्र से ही बात करने लगा. 

बिकुआ मेरा दोस्त था. किनारे पे बैठ मैं जब लहरों से बात कर रहा थे बिकुआ सामने नहा रहा था. और वो भी बगल में पानी से खेल रही थी. 

एका एक बिकुआ मुझे बैठा देखा तो मेरे पास आ के बैठ गया. वो उसी तरफ देख रहा था जिस तरफ लहरों के साथ वो खेल रही थी. 

"तुझे देखा तो ये जाना सनम....." गुनगुना रहा था बिकुआ. "ई का रे," हम पूछे. 

वो बिना कुछ बोले भाग गया फिर से पानी में. एतना चहक रहा था. अपनी चहचहाट में मेरी सुना भी नही रहा था. खैर सब आईआईएमसी लौट गए.

आईआईएमसी ने दोबारा पूरी भेजने का जब प्लान बना तो इतेफाक से तारीख 8 फरवरी को चुना गया.

सुबह सुबह ही फलिपकार्ट वालों ने "प्रोपोज डे पे उनको गिफ्ट कीजिये" वाला मेल भेजा था. सो मुझे पता था आज प्रोपोज डे है.

धौलीगिरी और रघुराजपुर होते हुए जब हम पूरी समुद्र के किनारे पहुंचे तब तक 2.30 बज चुके थे. बिकुआ तो तुरत पानी में उतर गया.

पता नहीं वो कहाँ थी, दिखी नही. हम भी आधे घंटे पानी में रहने के बाद किनारे पे आ के देखने लगे. हम सोच रहे थे कि वो कहाँ गयी. आज बिकुआ अकेले क्यों दिख रहा था.

तभी देखे वो रिक्शे से उतरी. और लपक के उधर जाने लगी जिधर हमारे बैच के लोग नहा रहे थे. बिकुआ उसे देखा तो स्थिर खड़ा हो के उधर ही देखने लगा.


वो भी उसे देख चुकी थी. धीरे धीरे लहरों में बहने के बहाने बिकुआ उस तरफ जाने लगा और वो इस तरफ आने लगी. वो दोनों एक दूसरे कि तरफ बढ़ने में व्यस्त थे, हम और चाचा उनको देखने में और सारी दुनिया अपने आप में.

अब दोनों एक फिट की दुरी पे खड़े थे. अचानक से एक लहर आयी और वो लहरों के साथ बिकुआ पे गिर पड़ी. बेचार बिकुआ. सम्भाल नहीं पाया. वो भी गिर पड़ा.

चाचा ने मेरे से कहा, "समुद्र के नमकीन पानी में बिकुआ का प्रोपोज डे तो नमकीन हो गया."

मैंने कहा, "फ़ोटो लो चाचा. वो दोनों लहरों से लड़ेंगे और आगे जायेंगे. आज नमकीन बोल रहे हो कल मीठा बोलोगे. "

खटाक  से चाचा ने फ़्लैश चमका दिया.

हॉस्टल आने के बाद बिकुआ ने चाचा से वो फ़ोटो माँगा और वो भी मांगी. बिकुआ बोला, "उसको मत बताना कि मैंने तुमसे फ़ोटो लिया है." और वो बोली, "बिकुआ को मत बोलना."

अगले दिन सारे बच्चों ने स्टडी ट्रीप पे रिपोर्ट लिख के सबमिट कर दिया.

"किसी ने रिपोर्ट सबमिट नही भी किया है?" सर ने पूछा।

केवल दो हाथ ऊपर उठे. एक बिकुआ का और एक उसका.

"नमकिन नशे का असर अभी भी है," चाचा मेरे से बोला.             

उस दिन से अब तक लगभग पांच साल हो गए. एक दिन असाइनमेंट पे कोलकाता जाना था. चाचा को फ़ोन किया. पता चला उसे भी उस असाइनमेंट पे जाना है कोलकाता.

बिकुआ कोलकाता में ही पोस्टेड था. उसके पास ही रुकने का प्लान हुआ. पहुँच गए बिना फ़ोन किये. दिन में असाइनमेंट से लौटे और रात को हम, चाचा और बिकुआ छत पे चले गए, बतियाने.

बिकुआ के लैपटॉप में अभी भी प्रोपोज डे वाला फ़ोटो था. हम देख ही रहे थे कि वो निचे से आ गयी.

"खाना नहीं है तुम लोगों को जी," वो बोली.

हम चाहे बिकुआ कुछ बोल पाते उससे पहले चाचा बोला, "काहे हड़बड़ा रही हो? आई आईएमसी गर्ल्स हॉस्टल का गेट थोड़े है जो नौ बजे बंद करना जरुरी है." 

हम तीनों हंस पड़े. और आज पहली बार देखे थे कि वो शरमा रही थी.


नोट: एक काल्पनिक कहानी है.

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